Tuesday, February 28, 2012

ओबीसी छात्रों को अब 27 फीसद आरक्षण


नई दिल्ली [राज्य ब्यूरो]। दिल्ली सरकार ने राजधानी के शैक्षणिक संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग [ओबीसी] श्रेणी में आने वाले विद्यार्थियों को अब 27 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया है। पहले यह सीमा 21 फीसद थी।
मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नेतृत्व में सोमवार को हुई दिल्ली मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय का फैसला किया गया। सरकार के इस लोकलुभावन निर्णय को दिल्ली नगर निगम चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है।
ओबीसी विद्यार्थियों के लिए आरक्षण सीमा बढ़ाए जाने के बारे में मुख्यमंत्री ने बताया कि असल में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला कर सरकार ने अपनी वचनबद्धता पूरी की है। कहा, फैसले से कमजोर वर्ग के विद्यार्थियों के लिए उच्च और तकनीकी शिक्षा हासिल करने का मार्ग प्रशस्त होगा।
दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने बताया कि ओबीसी के लिए आरक्षण बढ़ाए जाने के बावजूद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों में कोई कमी नहीं आएगी। प्रत्येक विषय में और प्रत्येक कक्षा में 12 फीसदी सीटें बढ़ाई जाएंगी ताकि सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए भी सीटों में कमी नहीं होने पाए।

Saturday, February 25, 2012

निगम स्कूलों में अव्यवस्था का आलम


निगम स्कूलों में अव्यवस्था का आलम
पूर्वी दिल्ली, जागरण संवाददाता : सरकार की कोशिशों के बावजूद नगर निगम स्कूलों में अव्यवस्थाओं का बोलबाला। कहीं स्कूल गेट के बाहर अतिक्रमण है तो कहीं स्कूल ग्राउंड में मलबा पड़ा है। इससे स्कूल में पढ़ने वाले नौनिहालों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। दरअसल, शिक्षा अधिकार कानून पारित होने के बाद सरकार व दिल्ली नगर निगम प्राइमरी एजुकेशन को बेहतर बनाने व ज्यादातर बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने के लिए सख्त रवैया तो अपना रहे हैं, लेकिन ये लोग स्कूली बच्चों को पर्याप्त सुविधाएं देना भूल रहे हैं। जगजीवन नगर स्थित कैथवारा निगम स्कूल दो शिफ्ट में चलता है। यहां हजारों बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। स्कूल की इमारतें तो बना दी गई, लेकिन मलबा मैदान में छोड़ दिया गया है। नौनिहाल ईट व पत्थर पर ही खेलते हैं। इससे बच्चे कई बार चोटिल हो जाते हैं। अभिभावक सीताराम व रूपचंद ने बताया कि स्कूल में खेल का मैदान बनाने के लिए कई बार शिक्षा विभाग में शिकायतें दी गई पर कोई सुनवाई नहीं हुई। हरिजन सुधार समिति के प्रधान ठाकुर दास ने बताया कि प्रशासन मैदान में रखा मलबा भी हटा दे तो बच्चे खेल सकेंगे। वहीं मंगल बाजार स्थित नगर निगम स्कूल दो शिफ्ट में चलाया जाता है, लेकिन सुबह से ही स्कूल गेट के बाहर रेहड़ी-पटरी वाले कब्जा जमा लेते हैं।स्कूल के दीवारों के सहारे रिक्शा स्टैंड बने हैं। इससे बच्चों को आते-जाते कई बार परेशानियां का सामना करना पड़ता है और वे चोटिल भी हो जाते हैं। क्या कहते हैं शिक्षा समिति के चेयरमैन : नगर निगम शिक्षा समिति के चेयरमैन महेंद्र नागपाल ने बताया कि मामले की पड़ताल करा कर समस्या का समाधान कराया जाएगा। ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि छात्रों को परेशानी न हो।

Source: Dainik Jagran

उत्तरी क्षेत्र में स्थापित सिविक सेंटर पर दक्षिण ने डाले डोरे


उत्तरी क्षेत्र में स्थापित सिविक सेंटर पर दक्षिण ने डाले डोरे 

उत्तरी निगम पार्षदों में गहरी नाराजगी, दक्षिणी क्षेत्र के प्रभाव में काम करने का आरोप, आधुनिक सिविक सेंटर के बदले 144 वर्ष पुराना टाउन हाल सौंपे जाने की चर्चा। 
बलिराम सिंह, नई दिल्ली
दिल्ली नगर निगम को तीन टुकड़ों में बांटने के बाद अब इनके मुख्यालयों को लेकर निगम पार्षदों में नाराजगी दिखने लगी है। उत्तरी निगम क्षेत्र में सिविक सेंटर होने के बावजूद उसे दक्षिणी निगम के मुख्यालय में तब्दील करने की सरकार की कवायद से उत्तरी निगम के पार्षदों में खासा आक्रोश है। उनका आरोप है कि दक्षिणी निगम में रसूखदार लोग रहते हैं, इसलिए उनके निगम का मुख्यालय सिविक सेंटर को बनाने की तैयारी की जा रही है।
बताते चलें कि नगर निगम को उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी निगम में बांट दिया गया है। इसके बाद अब इन तीनों निगमों के मुख्यालय बनाने की कवायद शुरू हो गई है, लेकिन अब इसमें भी पेंच फंस रहा है। इसका कारण यह है कि उत्तरी निगम में लगभग छह सौ करोड़ रुपए की लागत से बना डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविक सेंटर स्थित है, लेकिन इसे दक्षिणी निगम के हवाले किए जाने की तैयारी की जा रही है। जबकि, उत्तरी निगम का मुख्यालय 144 साल पुरानी ऐतिहासिक इमारत टाउन हाल को बनाने का प्रस्ताव है। हालांकि, उत्तरी दिल्ली के शहरी जोन का मुख्यालय सिविक सेंटर में ही रखने की बात चल रही है। मुख्यालय बदलने की यह कवायद ही उत्तरी निगम के पार्षदों को अखर रही है और इसको लेकर उनमें खासी नाराजगी है। रिठाला के वार्ड संख्या 22 से भाजपा पार्षद हरीश अवस्थी का कहना है कि टाउन हाल को भारतीय पुरातत्व विभाग को सौंप देना चाहिए। यह इमारत अत्यधिक पुरानी होने के साथ ही जर्जर भी हो चुकी है। सिविक सेंटर में उत्तरी निगम का मुख्यालय खोले जाने से साफ-सुथरे माहौल में काम करने का अवसर मिलेगा। इसी तरह, रोहिणी साउथ, वार्ड संख्या 45 के भाजपा पार्षद अनेश कुमार जैन भी इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस मामले में सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर आवाज उठानी चाहिए। ईस्ट पटेल नगर, वार्ड संख्या 95 के कांग्रेसी पार्षद तुलसीराम सबलानिया भी सरकार के इस फैसले का विरोध करते हुए कहते हैं कि उत्तरी निगम के लोगों के साथ दोहरी नीति अपनाई जा रही है।
अगर सरकार चाहे तो दोनों निगमों का मुख्यालय सिविक सेंटर में खोला जा सकता है। इसको देखते हुए अधिकारियों को एक बार फिर अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। 

टाउन हाल की मरम्मत का काम शुरू 
टाउन हाल का निर्माण लगभग पौने दो लाख रुपए की लागत से वर्ष 1866 में पूरा किया गया था। अब इस ऐतिहासिक इमारत की महज मरम्मत में ही 50 लाख रुपए से ज्यादा की धनराशि खर्च होने का अनुमान है। एमसीडी प्रवक्ता योगेन्द्र सिंह मान का कहना है कि तीनों निगमों के गठन से पहले ही टाउनहाल की मरम्मत का काम पूरा कर लिया जाएगा। 

Source: Bhaskar News

Friday, February 24, 2012

कही जर्जर न हो जाए टाउनहॉल


कही जर्जर न हो जाए टाउनहॉल
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता : चांदनी चौक स्थित ऐतिहासिक टाउनहॉल का फिलहाल किसी भी काम के लिए इस्तेमाल न होना एमसीडी प्रशासन के लिए चिंता का विषय बन गया है। टाउनहॉल उत्तरी एमसीडी का मुख्यालय होगा यह तय हो गया है। लेकिन इसे नवगठित मुख्यालय के रूप में कैसे तब्दील किया जाए, इस दिशा में कोई योजना नहीं बनी है। महीनों से खाली पड़े टाउनहॉल की हालत जर्जर न हो जाए इसे देखते हुए कमिश्नर केएस मेहरा ने अब अधिकारियों के साथ बैठकें आदि यहीं करने का फैसला लिया है। ताकि इस बहाने ही सही कुछ रखरखाव का काम वहां जारी रहे। हालांकि उन्होंने बताया कि एमसीडी चुनाव की प्रक्रिया समाप्त होने के बाद से उत्तरी एमसीडी में विभाग व कर्मचारियों आदि की संख्या को ध्यान में रखते हुए टाउनहॉल में उसी अनुरूप मुख्यालय में तब्दील करने का काम शुरू हो जाएगा। अभी विभिन्न मंजिल व ब्लाक में एकीकृत एमसीडी के हिसाब से जो काम कराए गए थे, उसे हटाकर नए तरीके से कार्यालय आदि बनाए जाएंगे। इंटीरियर का काम जिस ठेकेदार को दिया जाएगा उसे पुराने फर्नीचर आदि के बदले नया फर्नीचर लगाना होगा। मालूम हो कि एकीकृत एमसीडी की आखिरी बैठक गत वर्ष 19 सितंबर को टाउनहॉल के मीटिंग हॉल में हुई थी। इसके बाद मुख्यालय सिविक सेंटर स्थानांतरित हो गया था। ब्रिटिश काल में (1860-66) में बैठक आदि आयोजित करने के उद्देश्य से चांदनी चौक इलाके में टाउनहॉल का निर्माण हुआ था। इसके निर्माण में करीब 1.86 लाख रुपये लगे थे। इसे पहले इंस्टीट्यूट बिल्डिंग कहा जाता था।

Source: Dainik Jagran

कीड़े मारने की दवा खाने के बाद दो और बच्चे बीमार


कीड़े मारने की दवा खाने के बाद दो और बच्चे बीमार
 
कीड़े मारने की दवा खाने के बाद दो और बच्चे बीमार 
डॉक्टरों का दावा- दवा का नहीं है साइड इफेक्ट, जांच के आदेश 
भास्कर न्यूज त्न नई दिल्ली
पेट के कीड़े मारने की दवा पीने के बाद बच्चों के बीमार पडऩे का सिलसिला थम नहीं रहा है। ऐसे दो और बच्चों को हिंदूराव अस्पताल में भर्ती किया गया। एक बच्चे को दवा खाने के बाद दौरा पड़ गया, जबकि दूसरे बच्चे को उल्टी-दस्त की शिकायत होने पर अस्पताल में भर्ती किया गया। निजी क्लीनिकों में भी विभिन्न स्वास्थ्य विकारों को लेकर बच्चे पहुंच रहे हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली सरकार जांच में जुट गई है।

दूसरे तरफ डॉक्टर दावा कर रहे हैं कि सरकार ने पूरी जांच के बाद दवा पिलाने का अभियान शुरू किया है। ऐसे में इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है। बच्चों को किसी और वजह से समस्या हुई होगी। हालांकि बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि दवा देने के कुछ घंटे बाद ही दिक्कतें शुरू हो गई थीं। हालत गंभीर होने पर बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। एमसीडी की स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष डॉ. वीके मोंगा दावा कर रहे हैं कि दोनों ही मामलों से सीधे तौर पर कीड़े मारने की दवा का कोई लेना-देना नहीं है। उल्टी-दस्त किसी और वजह से भी हो सकता है। जहां तक एक बच्चे को दौरा पडऩे की बात है तो अस्पताल में उसका सिटी स्कैन किया गया है। जांच रिपोर्ट में जानकारी प्राप्त हुई कि उसके ब्रेन में सिस्ट (सिस्टी सरकोसिस) है। जिसकी वजह से बच्चे को दौरा पड़ा था। डॉ. मोंगा कहते हैं कि सिस्टी सरकोसिस भी खान-पान की गंदगी से दिमाग तक पहुंचने वाले कीड़े की वजह से होता है। इसका इलाज आसानी से हो जाता है। उन्होंने बताया कि मामले की रिपोर्ट दिल्ली सरकार को भेज दी गई है। सरकार अपने स्तर पर दवा की जांच कर रही है। दिल्ली सरकार के सूत्रों के मुताबिक मेडिकल इंसपेक्टरों की एक टीम गठित की गई। टीम को न केवल दवा की गुणवत्ता बल्कि पूरे मामले की गहनता से जांच करने का निर्देश जारी हो चुका है।

Source: Dainik Bhaskar

Thursday, February 23, 2012

80 हजार कर्मचारी करेंगे चुनाव ड्यूटी


80 हजार कर्मचारी करेंगे चुनाव ड्यूटी




एमसीडी में रिजर्व सीटों के बारे में हाई कोर्ट के निर्णय के इंतजार के बीच राज्य चुनाव आयोग चुनाव से जुड़ी अपनी तैयारी में जुटा है। इस चुनाव में करीब 80 हजार कर्मचारी लगाए जाएंगे। आयोग ने चुनाव में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों की जांच कर ली है। 

राज्य चुनाव कमिश्नर राकेश मेहता ने बताया कि इस चुनाव में करीब 80 हजार कर्मचारी लगाए जाएंगे, जिनमें पुलिस स्टाफ भी शामिल है। उन्होंने कहा कि चुनाव के लिए 13 हजार पोलिंग स्टेशन बनाए जाएंगे। इन सभी की पहचान कर ली गई है। उन्होंने कहा कि आयोग दिल्ली पुलिस के साथ भी संपर्क में है। विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद पुलिस पूरी दिल्ली में संवेदनशील कुछ वार्ड्स की घोषणा कर सकती है, जिसे देखते हुए चुनाव की रणनीति में कुछ बदलाव किया जा सकता है। मेहता के अनुसार, अगर ये वार्ड ज्यादा हुए तो हम और पुलिस बल की मांग कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस चुनाव में ईवीएम का प्रयोग होगा। उनकी पूरी जांच कर ली गई है और बैटरी आदि को बदल दिया गया है। 

कमिश्नर ने कहा कि इस चुनाव मंे वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए भी खास तैयारी कर ली गई है। इसे लेकर शीघ्र ही एक अभियान शुरू होने वाला है, जिसमें विभिन्न प्रचार माध्यमों से लोगों से वोट डालने की अपील की जाएगी। मेहता के अनुसार, उन्होंने जनवरी में चंडीगढ़ नगर निगम का चुनाव कराया था, जिसमें करीब 60 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि उससे पिछले निगम चुनाव में वोटिंग प्रतिशत मात्र 40 था। वोटिंग प्रतिशत इसलिए बढ़ा क्योंकि चुनाव से पहले वहां वोटिंग को लेकर कई कार्यक्रम आयोजित किए गए। इनमें बच्चों की मैराथन, सेमिनार, एफएम पर जिंगल्स और विज्ञापन आदि पर खासा ध्यान दिया गया। उन्होंने कहा कि अब दिल्ली में भी यही रणनीति अपनाई जाएगी। उन्होंने कहा कि पिछले निगम चुनाव में वोटिंग प्रतिशत 42 था। आयोग की कोशिश है कि इस बार वह बढ़कर 60 प्रतिशत हो जाए। 


Source: Nav Bharat Times

मतदान केंद्रों की तैयारी में जुटा निगम मतदान केंद्रों की तैयारी में जुटा निगम


मतदान केंद्रों की तैयारी में जुटा निगम 
निगम चुनाव 
जल्द जारी होंगे टेंडर, चुनाव में लगे कर्मचारियों के लिए करनी होगी एक लाख कुर्सियों की व्यवस्था। 
बलिराम सिंहत्न नई दिल्ली
एमसीडी चुनाव की तैयारी में दिल्ली चुनाव आयोग के साथ ही निगम भी जुट गया है। जल्द ही चुनाव से जुड़ीं आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी के लिए टेंडर जारी किया जाएगा। माना जा रहा है कि मतदान केंद्रों पर मतदान कर्मियों के बैठने के लिए लगभग एक लाख से ज्यादा कुर्सियों की व्यवस्था की जाएगी। इस बाबत दिल्ली चुनाव आयोग ने दिल्ली नगर निगम को निर्देश भी जारी कर दिया है।

निगम चुनाव के मद्देनजर 12044 मतदान केंद्रों पर टेंट, शामियाना, बल्लियां और सफाई व्यवस्था जैसी बुनियादी जरूरतों के अलावा पेयजल की व्यवस्था दिल्ली नगर निगम को करनी होगी। इस बाबत निगम लगभग 60 हजार मेज व 50 हजार गिलास खरीदेगा। इसके अलावा, जरूरत के मुताबिक टेंट, शामियाना और कनात की भी व्यवस्था की जाएगी। निगम अधिकारियों के मुताबिक प्रत्येक मतदान केंद्र पर कम से कम दो घड़े, चार गिलास, 5 मेज और 11 कुर्सियों की व्यवस्था की जाएगी। हालांकि, आम तौर पर अधिकांश मतदान केंद्र विद्यालयों में ही खोले जाते हैं, जहां कुर्सियों और मेजों की व्यवस्था आसानी से हो जाती है, लेकिन सामुदायिक केंद्रों अथवा अन्य स्थानों पर खोले जाने वाले मतदान केंद्रों पर इन वस्तुओं की व्यवस्था के लिए निगम को अपनी जेब खाली करनी पड़ेगी। माना जा रहा है कि अगले दो-तीन दिनों में इस बाबत निगम प्रशासन टेंडर जारी करेगा। इसके अलावा, मतदान केंद्रों पर तैनात कर्मचारियों के खानपान की जिम्मेदारी उपायुक्त की होगी। मुख्य चुनाव आयुक्त राकेश मेहता का कहना है कि मतदान केंद्रों पर बैरिकेडिंग, पेयजल व अन्य सुविधाओं की व्यवस्था एमसीडी करेगी। चुनाव आयुक्त बुधवार को गोल मार्केट में काउंटिंग सेंटर के लिए जगह का मुआयना करने गए थे। चुनाव आयुक्त ने विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण सेंटरों के लिए स्थान चयन करने का भी निर्णय किया है। निगम अधिकारियों के मुताबिक इस साल तीनों नवगठित निगमों के चुनाव में मौजूदा निगम को लगभग 13 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे। जबकि, वर्ष 2007 के एमसीडी चुनाव में निगम को लगभग 10 करोड़ रुपए व्यय करने पड़े थे।

Source: Dainik Bhaskar

EVMs for civic polls, but MCD goes for pitchers to keep water

EVMs for civic polls, but MCD goes for pitchers to keep water 


The Municipal Corporation of Delhi (MCD) might have gone tech-savvy but its preparation for civic elections remains woefully outdated.
While electronic voting machines will be used in these polls and the election commission has been asking people to register online for 
Voter's ID card, the civic agency continues to follow age-old practices.
Right from buying earthen pitchers (matka) with lids, and painda (base for supporting the pitchers), the civic agency has also invited bids for providing glasses, shamiyana, pedestal fans and curtains for the polls. The elections are slated to be held in April.
All these things will be required at the 12,044-odd polling booths which will be set up for the polls.
"All the officers who will be stationed at the polling stations would require basic facilities such as water and tea. Purchasing water bottles will be an expensive affair which is why we have decided to continue with matkas," said a senior MCD official.
A total of 24,000 matkas, 48,000 glasses, shamiyanas, curtains, and pedestal fans will be purchased. All this equipment will have to be supplied to the various furniture centres of the civic agency.
Meanwhile, Election Commission sources said the MCD should have discussed the issue with it and taken its suggestions before calling for tenders.
A total of 80,000 polling officers will be stationed across the city during the polls.
The exercise is going to cost Rs 4 crore.
The central zone which covers most of south Delhi will have the highest number of polling stations.
Also, 50 per cent of the 272 municipal seats have been reserved for women candidates in these elections. Delhi is the first state to introduce such reservation in civic polls.

Source: Hindustan Times

MCD begins 3-way split, starts to count its TVs, furniture and crockery


MCD begins 3-way split, starts to count its TVs, furniture and crockery


Project files, furniture, television sets, tea cups, spoons — government officials who met Tuesday to start dividing the Municipal Corporation of Delhi’s (MCD) assets had quite a varied list on hand.
The consensus on how to divide project documents among the three new municipalities, into which the MCD will be split this April, was relatively easier to arrive at.
“Jurisdiction of the three agencies could clash on several projects, so, we feel it’s best to have three separate copies of all project files, and a fourth one to be stored as a back-up,” said an MCD official who attended the meeting chaired by Commissioner K S Mehra.
But the more tricky decision, as expected, turned out to be the one related to splitting assets like expensive furniture, work stations and crockery at the MCD’s hundreds of offices.
The matter of such assets, worth nearly Rs 30 crore, bought recently for the MCD’s new headquarters, Civic Centre, came up during Tuesday’s meeting, officials who attended said.
“All the 37 head of departments who sit here received one centre table, chairs and sofa for their offices when we shifted from Town Hall. Now we don’t know what to do with this,” an official said.
The verdict on dividing such assets seemed split. A few officials said the thousands of chairs and other furniture bought for the Civic Centre shouldn’t be moved out at all.
“Those who will move out will order new furniture of their choice in the buildings they move into. The furniture at the Civic Centre will then be used by Delhi government offices, which will be shifted here,” an official said.
But retaining crockery may prove difficult. Officials at the Civic Centre said they do plan to carry some of their favourite crockery wherever they go.
“There are tea sets, which were bought after many deliberations. A few of us may take that crockery with us when we move to other offices. Flatscreen computers are likely to go with us, but we are not sure whether flatscreen TVs will also be moved,” a senior official said.
Officials managed to arrive at a few specifics like division of piles of documentation related to hundreds of projects whose jurisdiction may overlap among the three municipalities.
Yogendra Maan, Director of Press and Information, said, “We have been asked to make four copies of every file. Three will go to corporations and one will be put in a centralised bank to secure the data centrally.”

Source: Indian Express

Wednesday, February 22, 2012

सैलरी बढ़ेगी सबसे ज्यादा



सैलरी बढ़ेगी सबसे ज्यादा

22 Feb 2012, 0510 hrs IST,नवभारत टाइम्स  

लगातार 10वें साल इस बार भी एशिया में सबसे ज्यादा सैलरी भारतीयों की बढ़ेगी। ग्लोबल ह्यूमन रिसोर्स कंसल्टिंग फर्म एओन हेविट के सर्वे के मुताबिक, 2012 में भारत में विभिन्न सेक्टरों में काम करने वाले कर्मचारियों की सैलरी में औसतन 11.9 प्रतिशत का इजाफा होगा। हालांकि यह 2011 के 12.6 औसत इंक्रीमेंट से कुछ कम है, लेकिन इसका कारण इस बार एंप्लॉयर्स की जरूरत से ज्यादा सावधानी है। इसके बावजूद यह दुनियाभर की सबसे ज्यादा सैलरी हाइक में से एक होगा। चीन दूसरे नंबर पर रहेगा। अन्य देशों में जापान में 2.8, ऑस्ट्रेलिया 4.8, हांगकांग 5 और सिंगापुर में 4.8 फीसदी इंक्रिमेंट होगा। 

अगर ब्याज दरें कम हुईं, महंगाई नियंत्रण में रही और आर्थिक विकास दर में तेजी का आलम कायम रहा, तो सैलरी और ज्यादा बढ़ सकती है। इसके पूरे आसार हैं, क्योंकि 2012-13 में भारत की विकास दर 7.5 से 7.7 प्रतिशत तक रहने का अनुमान है। 

टॉप थ्री इंक्रीमेंट 
1. 11.9 फीसदी - भारत में 

2. 9.5 फीसदी - चीन में 

3. 6.9 फीसदी - फिलीपींस में 

किस लेवल पर कितनी हाइक (प्रतिशत) 

टॉप/ सीनियर मैंनेजमेंट -11.1 

मिडिल मैनेजमेंट - 12.0 

जूनियर मैनेजमेंट - 12.3 

जनरल/एंटी स्टॉफ - 11.8 

किस सेक्टर में कितना इंक्रीमेंट (प्रतिशत) 

फार्मा - 13.3 

इंजीनियरिंग - 13.0 

इंफ्रास्ट्रक्चर - 12.9 

केमिकल्स - 12.6 

मैन्यूफैक्चरिंग -12.4 

एफएमसीजी - 12.4 

ऑटो -12.4 

आईटी -11.9 

रिटेल - 11.8 

एनर्जी -11.8 

टेलिकम्यूनिकेशन - 11.0 

फाइनैंस - 10.0 

पेमेंट क्राइसिस से आकाश पर संकट के बादल

 आईआईटी राजस्थान और डाटाविंड के बीच कड़वाहट अपने चरम पर पहुंच गई है। इसकी वजह से आकाश टैबलेट की सप्लाई पूरी तरह ठप पड़ गई है। यहां तक कि 35 डॉलर वाले आकाश टैबलेट के सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट की वैधता अवधि में महज एक महीना बचा है। बावजूद इसके दोनों पक्षों में सुलह के कोई लक्षण नहीं दिख रहे हैं। 

आकाश की सप्लाई के लिए लेटर ऑफ क्रेडिट की अवधि बढ़ाकर 31 मार्च कर दी गई है, लेकिन डाटाविंड ने इस मामले में बिल्कुल सख्त रुख अपना लिया है। डाटाविंड आकाश की वेंडर कंपनी है। कंपनी ने आईआईटी राजस्थान से कहा है कि जब तक उसका बकाया भुगतान नहीं किया जाता, तब तक वह आकाश टैबलेट की और सप्लाई नहीं करेगी। डाटाविंड के सीईओ सुनीत सिंह तुली ने कहा, जब तक हमें पहले के टैबलेट के बकाए का भुगतान नहीं किया जाता हम और टैबलेट की सप्लाई नहीं करेंगे। 

हालांकि, इस मामले में आईआईटी राजस्थान ने कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया है। डाटाविंड ने अब तक 10,000 टैबलेट की सप्लाई आईआईटी राजस्थान को की है। यह आपूर्ति 2,276 रुपए प्रति टैबलेट की दर से किया गया है। हालांकि इस बीच कुछ ऐसी खबरें भी आई हैं कि आकाश-2 के टेंडर से डाटाविंड को बाहर कर दिया है। लेकिन इन खबरों पर मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि यह बयान को तोड़ मरोड़कर पेश करने का मामला हो सकता है, क्योंकि ऐसा कुछ नहीं हुआ है। आकाश-2 प्रॉजेक्ट की टेंडर प्रक्रिया में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, यह पूरी तरह दो पक्षों के बीच हुआ एक व्यावसायिक विवाद है। लेकिन हमें इस बात की जानकारी नहीं है कि किसी वेंडर को इसमें शामिल होने से मना किया गया है। 

उन्होंने कहा, आकाश 2 के लिए सी-डैक और आईटीआई सिर्फ टेंडर का कामकाज संभालती हैं। लेकिन वे बगैर किसी प्राइवेट हार्डवेयर कंपनी के प्रॉजेक्ट को आगे नहीं बढ़ा सकती हैं। डाटाविंड ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि उसे अगले टेंडर से बाहर निकाले जाने संबंधी कोई औपचारिक या अनौपचारिक जानकारी मानव संसाधन मंत्रालय की तरफ से नहीं मिली है।
22 Feb 2012, 0733 hrs IST,इकनॉमिक टाइम्स  

दम तोडऩे लगा है शिक्षा का अधिकार कानून


दम तोडऩे लगा है शिक्षा का अधिकार कानून 
पंकज कुमार पांडेय त्ननई दिल्ली

हंगामेदार तरीके से 2010 में लागू हुआ शिक्षा का अधिकार कानून लगभग हर जगह दम तोड़ रहा है। बच्चों को अनिवार्य शिक्षा देने की बात तो दूर उनके लिए स्कूल तक भी नहीं खुल पा रहे हैं। स्कूल खोलने के नाम पर सरकारों का ठंडा रवैया कहीं मुद्दा नहीं बन पा रहा है। राइट टु एजुकेशन के दुरुस्त अमल के लिए बड़ी जरूरत शिक्षकों की भर्ती के मामले में भी राज्यों का रवैया सुस्त है। जहां स्कूल नहीं हैं उन इलाके में बच्चों को एक अदद स्कूल मिल जाए, इसकी सुध शायद सरकार में शामिल लोगों को नहीं रही। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में पिछले वित्त वर्ष में मंजूर 39 फीसदी प्राइमरी स्कूलों को खोला नहीं जा सका। पड़ोस के उत्तराखंड में भी 75 फीसदी स्कूल नहीं खोले जा सके।

शिक्षा क्षेत्र का दूसरा संकट शिक्षकों की कमी है। इसे दूर करने में भी कोई पहल नहीं की जा रही। मध्य प्रदेश , यूपी, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और बिहार सब जगह शिक्षकों की कमी का रोना है। शिक्षा समवर्ती सूची में तो है लेकिन स्कूली शिक्षा की सुध लेने में केंद्र और प्रदेशों का तदर्थ रवैया 2010 में शिक्षा अधिकार कानून बनने के बाद भी बरकरार है।

नई दिल्ली में दो दिन बाद यानी 22 फरवरी को शिक्षा मंत्रियों की बैठक में इस मसले पर चर्चा होने जा रही है। पहले की तरह इस बार भी राज्य धन की कमी का रोना रोएंगे। धन की कमी से पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे राज्य में 20 फीसदी स्कूलों को नहीं खोला जा सका। राजस्थान में छह फीसदी, जम्मू-कश्मीर में 20 फीसदी प्राइमरी स्कूल अभी भी खुलने की बाट जोह रहे हैं। यूपी और राजस्थान में अपर प्राइमरी स्कूल भी क्रमश: छह और पांच फीसदी की संख्या में नहीं खुल पाए।

अध्यापकों की भर्ती के मामले में भी केंद्र और राज्यों की रस्साकशी जारी है। बावजूद इसके बड़ी संख्या में अध्यापकों के पद रिक्त हैं। मध्य प्रदेश में एक लाख 71 हजार 267 पदों पर भरती की मंजूरी दी गई थी। अभी भी 72 हजार 980 पद खाली हैं। राजस्थान में कुल मंजूर एक लाख 14 हजार 132 पदों से अभी भी 19931 पद खाली हैं। चुनावी राज्य यूपी में मंजूरी दी गई थी चार लाख 23 हजार से ज्यादा पदों पर भरती के लिए लेकिन इनमें से तीन लाख 97 हजार से ज्यादा पद खाली हैं। पश्चिम बंगाल में मंजूर एक लाख 96 हजार से ज्यादा पदों में से 83 हजार से ज्यादा नियुक्तियां ममता बनर्जी सरकार को करना बाकी है। पंजाब में 14 हजार 90 पदों पर भरती होनी थी, लेकिन 4 हजार 396 अभी भी खाली हैं। महाराष्ट्र में 41 हजार 434 पदों में से 26 हजार से ज्यादा पद खाली। बिहार में कुल 4 लाख 3 हजार से ज्यादा पदों में से 2 लाख 11 हजार से ज्यादा अभी भी रिक्त। इन आंकड़ों में राज्य सेक्टर की नियुक्तियों को नहीं शामिल किया गया। राइट टु एजुकेशन के अमल में आने पर देश भर में शिक्षकों की भरती को सबसे ज्यादा जरूरी कदम बताया गया था।

ये हालात बताते हैं कि शिक्षा अधिकार कानून किस तरह धीमी गति से चल रहा है और इसकी परवाह किसी को नहीं। 22 फरवरी को होने वाली शिक्षा मंत्रियों की बैठक में शायद ये सारे मुद्दे उठें और कोई उपाय निकाला जा सके।

Source: Dainik Bhaskar

PFRDA calls for Fund Managers to look after Central Government Employees NPS


PFRDA calls for Fund Managers to look after Central Government Employees NPS


Pension fund regulator PFRDA has invited bids from financial institutions to manage funds of Central Government Employees under the New Pension Scheme (NPS) for the next three years beginning April 1, 2012.
The fund managers will be required to manage the pension assets of Central government employees, according to Pension Fund Regulatory and Development Authority (PFRDA).
The three pension fund managers will have to submit bids by March 15, PFRDA said. At present, pension funds of government employees are managed by three pension fund managers (PFMs) — LIC Pension Fund, SBI Pension Fund, and UTI Retirement Solutions. The total corpus of the government employees as on December 2011 was Rs 12,769 crore.
These three fund managers are also eligible for participating in the bidding process, the regulator said. The total average monthly subscriptions of government employees is around Rs 500 crore.
National Pension System (NPS) was introduced on January 1, 2004, and is mandatory for central government employees (except armed forces personnel) appointed on or after January 2004. The scheme was made available to all citizens on a voluntary basis from May 1, 2009.
Even though NPS is an immensely beneficial financial product for unorganised sector employees, especially those who do not manage a steady source of income after retirement, it has received lukewarm response till now.
To popularise the scheme, PFRDA, in September 2010, introduced the Swavalamban scheme. Under this scheme, the government contributed Rs 1,000 per year to each NPS account opened in the year 2010-11 and for the next three years, i.E., 2011-12, 2012-13 and 2013-14. To be eligible, a person has to make a minimum contribution of Rs 1,000 and maximum contribution of Rs 12,000 per annum.
Source: Times of India

पांच लाख तक की आय पर जरूरी नहीं रिटर्न भरना


पांच लाख तक की आय पर जरूरी नहीं रिटर्न भरना 
ञ्चवित्त मंत्रालय ने जारी की अधिसूचना

एजेंसीत्ननई दिल्ली

अब एक साल में पांच लाख रुपए तक की आय वालों को अलग से आयकर रिटर्न भरने की जरूरत नहीं होगी। मंगलवार को इस आशय की अधिसूचना वित्त मंत्रालय ने जारी कर दी। यह नियम कराधान वर्ष 2012-13 से लागू होगा। इससे उन 85 लाख से ज्यादा लोगों को लाभ होगा जिनकी आय केवल वेतन अथवा वेतन और बैंक में जमा राशि से प्रतिवर्ष 10 हजार या उससे कम ब्याज से होती है। तथा वह एक साल में कुल मिला कर पांच लाख रुपए से ज्यादा नहीं होती।

अलग से आयकर रिटर्न भरने की छूट तभी मिलेगी जब नियोक्ता द्वारा दिया गया कर कटौती वाला फॉर्म 16 होगा। हां, आयकर रिफंड लेना हो तो अलग से भी रिटर्न भरना पड़ेगा। इस अधिसूचना के जारी होने से पहले तक आयकर कानून 1961 के तहत सभी वेतनभोगियों को अलग से भी आयकर रिटर्न भरना पड़ता था। सूत्रों के अनुसार यह माना गया कि जिनकी आय वेतन के अलावा कहीं और से नहीं है उन्हें एक ही जानकारी दो अलग अलग रिटर्न में भरनी पड़ती थी।





अभी आयकर स्लैब के अनुसार 1.80 से 5 लाख रुपए तक की आय पर 10 प्रतिशत, 5 से 8 लाख तक की आय पर 20 प्रतिशत तथा 8 लाख से अधिक आय वालों को 30 प्रतिशत आयकर जमा करवाना होता है।

संसदीय पैनल द्वारा जिस प्रस्ताव पर अभी विचार चल रहा है उसमें आयकर छूट की सीमा 1.80 लाख से बढ़ा कर 2 लाख रुपए किए जाने का प्रावधान है।

Source: Dainik Bhaskar

मोबाइल शिक्षा: अब स्कूल जाएगा बच्चों के पास


मोबाइल शिक्षा: अब स्कूल जाएगा बच्चों के पास 
गरीब बच्चों व रेड लाइट एरिया की महिलाओं के बच्चों को मोबाइल स्कूलों के जरिये शिक्षित कर समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाएगा 
गणेश भट्टत्न नई दिल्ली
दिल्ली के रेड लाइट एरिया की महिलाओं के बच्चों को मोबाइल स्कूलों के जरिये शिक्षित कर समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाएगा। मोबाइल स्कूल में टीचर के अलावा ब्लैक बोर्ड, फर्नीचर, पीने का पानी, नोटबुक व बच्चों के कोर्स से जुड़ी सभी किताबें रहेंगी। इन स्कूलों को बड़े आकार की बसों में बनाया जाएगा। स्कूल स्थानीय लोगों की जरूरत के हिसाब से बच्चों के मोहल्ले में जाएंगे। इन स्कूलों में पढऩे के लिए कोई फीस भी नहीं देनी होगी और बच्चों को अपने माता-पिता का नाम व काम बताने की भी जरूरत नहीं होगी।

दिल्ली के शिक्षा मंत्री अरविंदर सिंह लवली के मुताबिक सरकार जल्द ही १३ मोबाइल स्कूल खोलेगी। शिक्षा मंत्री ने दावा किया कि सामान्य स्कूलों में मिलने वाली जरूरत की सभी वस्तुएं इन स्कूलों में मौजूद होंगी। मोबाइल स्कूलों के लिए प्रशिक्षित अध्यापकों की व्यवस्था की जा रही है। रेड लाइट एरिया के अलावा ये स्कूल उन क्षेत्रों में भी जाएंगे जहां परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। शिक्षा मंत्री के मुताबिक मोबाइल स्कूल में दाखिला लेने के लिए न किसी दस्तावेज की आवश्यकता है न ही अन्य किसी प्रकार की औपचारिकता पूरी करनी पड़ेगी। इन स्कूलों में कोई भी बच्चा पढऩे आ सकता है। सरकार ने मोबाइल स्कूलों के लिए दिल्ली के जीबी रोड समेत कुछ अन्य इलाकों का चयन किया व करीब आधा दर्जन स्थानों का चयन अभी किया जाना बाकी है। दिल्ली में फिलहाल ट्रायल बेस पर दो ऐसे स्कूल शुरू किए गए हैं। ट्रायल पर शुरू किए गए मोबाइल स्कूल खोलने का मकसद बच्चों की रुचि, अभिभावकों की प्रतिक्रिया व स्कूल चलाने में आने वाली दिक्कतों का जायजा लेना है।

Source: Dainik Bhaskar

निगम विद्यालयों में बच्चों को खिलाई दवाई



निगम विद्यालयों में बच्चों को खिलाई दवाई 
भास्कर न्यूजत्न नई दिल्ली
दिल्ली नगर निगम ने स्कूली बच्चों को पेट के कीड़ों (कृमि) से मुक्त दिलाने के लिए दवाई खिलाने का अभियान मंगलवार से शुरू कर दिया। निगम की चिकित्सा समिति के अध्यक्ष डॉ.वीके मोंगा ने अभियान की शुरुआत पूर्वी दिल्ली के कांती नगर स्थित प्राथमिक विद्यालय से की। उधर, शिक्षा समिति के अध्यक्ष डॉ.महेन्द्र नागपाल ने भी केशवपुरम स्थित निगम विद्यालय में छात्रों को मेबेंडॉजोल (500 एमजी) की गोली खिलाकर योजना शुभारंभ की। चाचा नेहरू सेहत योजना के अंतर्गत चलाए गए अभियान में बच्चों व शिक्षकों को चबाये जाने वाली मेबेंडॉजोल की गोली दोपहर के भोजन के बाद दी गई। निगम विद्यालयों के जो बच्चे और शिक्षक इस गोली को लेने से वंचित रह गए हैं उन्हें यह दवा 27 फरवरी को दी जाएगी। डॉ.वीके मोंगा का कहना है कि सामान्य परिवारों में मिट्टी के संसर्ग में रहने के कारण छोटे बच्चों में पेट के कीड़ों की शिकायत आम तौर पर हो जाती है, जिसके कारण खून की कमी, कुपोषण, शारीरिक व मानसिक विकास में रुकावट अथवा अपंगता, शिक्षा के प्रति कम रुझान तथा बड़े होने पर शारीरिक क्षमता में कमी रह जाती है। 


Source: Dainik Bhaskar

निगम अध्यापकों को चार माह से नहीं मिला वेतन


निगम अध्यापकों को चार माह से नहीं मिला वेतन 
नई दिल्लीत्न दिल्ली नगर निगम के सभी विभागों के कर्मचारियों को तो समय से वेतन मिल जाता है, लेकिन निगम के सहायता प्राप्त 44 विद्यालयों के अध्यापक पिछले चार महीने से वेतन का इंतजार कर रहे हैं। आमतौर पर इन अध्यापकों को वेतन हमेशा देर से ही मिलता है। वर्तमान में निगम द्वारा संचालित 1729 विद्यालयों में से 44 विद्यालय सहायता प्राप्त हैं। इनमें हजारों बच्चे अध्ययनरत हैं और सैकड़ों अध्यापक कार्यरत हैं। बावजूद इसके इन विद्यालयों में कार्यरत अध्यापकों और अन्य कर्मचारियों को पिछले कई महीने से वेतन नहीं मिला है। अध्यापकों का कहना है कि अन्य विभागों में तो समय से वेतन का भुगतान कर दिया जाता है, लेकिन उनके साथ इस मामले में निगम के अधिकारी दोहरी नीति अपनाते हैं। इसकी वजह से उन्हें खासी दिक्कत होती है। मंगलवार को निगम शिक्षा समिति की बैठक में इस मामले को उठाते हुए समय से वेतन दिए जाने की मांग की गई। 


Source: Dainik Bhaskar

MCD puts split process in motion


MCD puts split process in motion

Risha Chitlangia TNN 


New Delhi: The Municipal Corporation of Delhi (MCD) has finally begun the mammoth task of dividing its existing infrastructure. And the biggest challenge before the civic agency is to divide its new e-governance project between the three corporations. 
    Recently, the MCD held a meeting with its consultant, Wipro, and developer, Tech Mahindra, to prepare a blueprint for dividing the IT infrastructure between the

three corporations and submit it by February end. 
    Sources say that the existing e-governance project runs on 52 servers and it is physically impossible to divide the servers between the three corporations, as each server is performing a dedicated task. And to have 52 servers for each corporation will add a lot of financial burden on the new corporations. 
    “We have asked Wipro and Tech Mahindra to submit the blueprint by end of February. Dividing the IT services is going to be a challenging task. The tenders and other important citizen-centric services 
have to be centralized,’’ said a senior MCD official. 
    Sources say that a proposal to have an IT director at the centre to coordinate with all the additional IT directors in three corporations is being considered. “This proposal is being mulled as dividing IT is a big task,’’ said an MCD official. 
    Meanwhile, MCD commissioner KS Mehra recently directed all department heads to make three copies of ongoing projects. “Each corporation will have one copy of the file and a copy will be kept in central record room. The civic agency has also started the process of dividing the manpower and infrastructure,’’ said an MCD official. 
    While the Delhi government is finalizing the nittygritty of trifurcation, sources say that a proposal to form a lead corporation for a particular task is also being considered. 
    “There are several drains which will run through different corporations. The work to de-silt will have to be taken up simultaneously by the corporations. There is a proposal to form a lead corporation for each task,’’ said an MCD official. For example, for cleaning of drains, one corporation will take the responsibility and coordinate with all the corporations. Similarly, another corporation can look after sanitation, etc. “But all these proposals are in the initial stages. A decision will be taken soon’’ said an MCD official. 
 


Source: Times of India

Tuesday, February 21, 2012

Banned in class but rod is still in use


Banned in class but rod is still in use

 


Corporal punishment is passe , claim most schools. However , parents and cops do not agree. The primitive practice - banned by Delhi High Court over a decade ago - still finds resonance among a section of teachers . The problem is that teachers, rooted in archaic ideologies, refuse to let go of control in the name of discipline, feel experts.

Cut to 2007. A 19-year-old teacher at a school in Mohan Nagar allegedly stripped a six-yearold nursery student and made her stand on a desk for not doing her homework. Often, the gravity of such cases comes to the fore only after a media frenzy, much like in the Shanno Khatun case in 2009. Shanno, an 11-year-old allegedly died after being forced to stand in the sun for hours at an MCD school. In the past five years, 13 such instances have been reported to the police. Cops say that in such cases it is difficult to gather evidence because children -the sole eyewitnesses - are easily intimidated .

But there has been a transition in the way parents react to such matters. "Though hardly any cases are registered - parents back out fearing that the child's future may be jeopardized - we have become more pro-actively involved in settling issues involving teachers ," said a police officer.

Experts say that sparing the rod is not enough. Teachers must develop a strong bond with every child in the classroom. But teachers say it's a challenge no training institute ever prepares them for. Prohibited from slapping, spanking or caning children, teachers feel powerless. At times, they even face opposition from parents for scolding kids. Teachers say they cannot get anywhere unless parents cooperate with them. After all, bringing up a child is a collaborative effort.

Teachers feel that it is wrong on the part of authorities to single them out every time they try to discipline a child. "Often parents question our authority to be strict with their child when 'corporal punishment' is banned. It's difficult to assure them that we mean no harm," says a teacher from a west Delhi school. Schools claim they have been largely successful in implementing the ban on corporal punishment with clear instructions issued to teachers. National Progressive Schools Conference organizes workshops suggesting alternative ways of controlling indiscipline.

But parents feel otherwise. Mira Sabharwal, a parent, recalls an incident when her son was bullied by fellow students but the teacher refused to listen to him. "She scolded my son for behaving like a victim and snubbed us when we intervened," Sabharwal said.

Ashok Pandey, principal, Ahlcon International School, suggests a collaborative approach between parents and teachers in such a situation.

शिक्षा की गुणवत्ता पर एक, बच्चों पर सात फीसदी होता है खर्च


शिक्षा की गुणवत्ता पर एक, बच्चों पर सात फीसदी होता है खर्च
 
शिक्षा की गुणवत्ता पर एक, बच्चों पर सात फीसदी होता है खर्च 
पंकज कुमार पांडेय. नई दिल्ली

स्कूल की दहलीज तक बच्चों को ले जाने और उन्हें बीच में स्कूल छोडऩे से बचाए रखने के साथ ठीक-ठाक पढ़ाई यानी गुणवत्ता का सवाल बहुत पेचीदा है। गुणवत्ता की बड़ी-बड़ी बात करने वाली केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की पोल खोलने वाली तस्वीर खुद सरकारी आंकड़ों में है। मानव संसाधन मंत्रालय ने पिछले दिनों राज्यों के शिक्षा सचिवों के साथ जो डाटा साझा किया है, उसमें स्कूलों में गुणवत्ता पर होने वाले खर्च को लेकर दर्ज कहानी चौंकाने वाली है। बच्चों के ऊपर भी बजट का बहुत थोड़ा-सा हिस्सा ही खर्च होता है। बजट की सबसे ज्यादा रकम जाती है अध्यापकों के नाम। उनकी तनख्वाह और अन्य सुविधाओं के नाम पर।

स्कूलों में ट्रेनिंग का कोई इंतजाम नहीं है। कई राज्य तो मिला हुआ पैसा योजनाओं पर खर्च नहीं कर पाते हैं। खराब वित्तीय प्रबंधन के चलते बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, केरल, लक्षद्वीप, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम और अंडमान निकोबार ऐसे राज्यों में हैं जिन्होंने 50 फीसदी से भी कम खर्च वित्तीय वर्ष में दिखाया है। 13वें वित्त आयोग का फंड नहीं लेने वाले राज्यों में पंजाब शामिल है। गोवा, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, सिक्किम, मणिपुर जैसे राज्यों ने वित्त आयोग की ओर से आवंटित धनराशि नहीं ली है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने स्कूली शिक्षा के लिए आगामी वित्त वर्ष के लिए करीब 51 हजार करोड़ रुपए मांगे हैं। इसमें से पांच हजार करोड़ पहले की बकाया राशि है।

॥गुणवत्ता निश्चित रूप से बड़ा सवाल है। हम शिक्षा के अधिकार के अमल में आने के बाद से स्कूलों में दाखिलों के साथ गुणवत्ता बढ़ाने पर फोकस कर रहे हैं। जहां कमी है, दुरुस्त करने का प्रयास हो रहा है।'

- अंशू वैस, शिक्षा सचिव

Source: Dainik Bhaskar

Monday, February 13, 2012

सुरक्षा के लिए लामबंद हो रहे एमसीडी कर्मी



सुरक्षा के लिए लामबंद हो रहे एमसीडी कर्मी

12 Feb 2012, 0400 hrs IST,नवभारत टाइम्स  




नई दिल्ली : 
सुरक्षा की मांग को लेकर एमसीडी के कर्मचारी एकजुट होने लगे हैं। सभी विभागों की जॉइंट फेडरेशन युनाइटेड फ्रंट ऑफ एमसीडी एंप्लॉइज ने सोमवार से एकसाथ प्रदर्शन का ऐलान किया है। इस बीच, इग्जेक्युटिव इंजीनियर अंसार आलम को अपोलो अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया है। डॉक्टरों का कहना है कि उनकी हालत में सुधार हो रहा है। 

फोरम ऑफ एमसीडी इंजीनियर्स और जॉइंट फ्रंट के महासचिव राजेश मिश्रा ने एमसीडी प्रशासन पर घायल की अनदेखी का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि शुक्रवार को आलम की तबियत बिगड़ गई थी और संजीवन हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने उन्हें वहां से शिफ्ट करने की सलाह दी। ऐसे में वहां का बिल जमा कराने और अपोलो में भर्ती कराने के लिए इंजीनियरों ने ढाई लाख रुपये चंदा इकट्ठा किया। सब हो जाने के बाद जब फोरम का दबाव पड़ा तब एमसीडी प्रशासन ने एक लाख रुपये का चेक जारी किया। मिश्रा ने मांग की है कि अब अपोलो के नाम एक लेटर जारी किया जाए जिससे इलाज के बीच में घायल या उनके परिवार से पैसों की मांग न की जाए। बाद में एमसीडी बिल का भुगतान करे। इसके साथ ही हमले के मामले में धारा 307 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए। इंजीनियर और फील्ड में जाने वाले कर्मचारियों के साथ मारपीट न हो, इसके लिए कमिश्नर अपनी देखरेख में डेमोलिशन स्क्वॉड बनाएं ताकि जोनल अधिकारियों को सिर्फ अवैध संपत्तियों की पहचान कर कमिश्नर को अपनी रिपोर्ट भेजनी हो। ऐसे में इंजीनियरों को निशाना नहीं बनाया जाएगा और भ्रष्टाचार भी कम होगा। 

मिश्रा का कहना है कि अगर सोमवार तक इन मांगों पर कदम नहीं उठाया गया तो प्रदर्शन और तेज होगा। इसमें एमसीडी की अन्य असोसिएशंस भी शामिल होंगी, क्योंकि एमसीडी के अस्पतालों में भी आए दिन डॉक्टरों, कर्मचारियों के साथ मारपीट के मामले सामने आते हैं। उन्होंने कहा कि मच्छरों की जांच के लिए घर-घर जाने वाले डीबीसी वर्कर्स पर भी हमले हो चुके हैं। 


Source: Nav Bharat Times

मार्च के शुरू में जारी कर दी जाएगी चुनाव की अधिसूचना


मार्च के शुरू में जारी कर दी जाएगी चुनाव की अधिसूचना
दिल्ली नगर निगम चुनावों के लिए किए गए सीटों के आरक्षण को लेकर शहर में हंगामा है। विशेषकर, अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गई सीटों को लेकर उन पार्षदों में बेहद असंतोष है, जिनकी सीटें इसके कारण हाथ से निकल गई हैं। मामला अब दिल्ली हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। इस पूरे मामले में दिल्ली के चुनाव आयुक्त राकेश मेहता लगातार चर्चा में बने हुए हैं। पेश हैं अजय पांडेय की उनके साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश। सीटों के आरक्षण को लेकर पैदा हुए विवाद पर आपकी क्या राय है? उत्तर: दिल्ली नगर निगम को अब तीन हिस्सों में बांटा जा चुका है। नियमानुसार महिलाओं तथा अनुसूचित जाति के लोगों के लिए सीटें आरक्षित की गई हैं। काफी सोच विचार के बाद विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या को देखते हुए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। वैसे, तो यह मामला अब अदालत में लंबित है और जाहिर तौर पर अदालत के फैसले का सबको इंतजार है। चुनाव की अधिसूचना कब तक जारी होगी? सबसे पहले तो यह देखना होगा कि अदालत का फैसला क्या आता है। लेकिन जहां तक तैयारियों का सवाल है, तो मार्च के शुरू में चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी जाएगी। क्या चुनाव आयोग ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं? बिल्कुल। चुनावी तैयारियां चल रही हैं। मैंने सभी जिलों के उपायुक्तों की बैठक बुलाकर उन्हें आवश्यक निर्देश दिए हैं। फरवरी के अंत में इस मामले में फिर एक बैठक बुलाई जा रही है। इसमें अंतिम रूप से सारे निर्णय ले लिए जाएंगे। दिल्ली में कितने मतदान केंद्र होंगे? करीब 11,400 मतदान केंद्र बनाए जाएंगे। जबकि 26 स्थानों पर मतगणना होगी। मैंने सभी मतगणना केंद्रों का निरीक्षण शुरू कर दिया है। इस महीने में यह काम पूरा किया जाना है। विभिन्न राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में इस बार भारी संख्या में मतदाताओं ने वोट डाले हैं। दिल्ली में क्या इंतजाम किए जा रहे हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा मतदाता वोट डालने आएं? यहां युवा मतदाताओं की संख्या अधिक है। कोशिश होगी कि मतदाताओं में जागरूकता फैलाने के लिए प्रचार अभियान चलाया जाए। अखबार, टीवी, एफएम आदि के माध्यम से यह काम किया जाएगा।

Source: Dainik Jagran

पढ़ाने की बात पर शिक्षक डांटते हैं


पढ़ाने की बात पर शिक्षक डांटते हैं
 
पढ़ाने की बात पर शिक्षक डांटते हैं 
सरकारी स्कूल के छात्र ने की शिकायत, सोशल ज्यूरिस्ट को लिखा पत्र। 
भास्कर न्यूज. नई दिल्ली
राजधानी के सरकारी स्कूलों में होने वाली पढ़ाई से परेशान छात्रों का दर्द अब पोस्टकार्ड के माध्यम से निकला है। पड़पडग़ंज स्थित सरकारी सर्वोदय बाल विद्यालय में पढऩे वाले दसवीं के एक छात्र ने सोशल ज्यूरिस्ट को पत्र लिखकर बताया है कि शिक्षक अव्वल तो कक्षाएं नहीं लेते हैं और जब उनसे इसको लेकर बात की जाती है तो वह डांटकर भगा देते हैं।

सोशल ज्यूरिस्ट के प्रमुख अशोक अग्रवाल ने बताया कि इस स्कूल की स्थिति के बारे में जानकर वह हैरान हैं। बच्चे किस हद तक शिक्षकों से डरते हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 15 दिसंबर, 2011 को लिखा गया पत्र 6 फरवरी, 2012 को पोस्ट किया गया। अग्रवाल ने बताया कि उनका संगठन लगातार शैक्षणिक सुधार के लिए कार्यरत है इसलिए इस मामले में भी वह दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय से लेकर न्यायालय तक लड़ाई लड़ेंगे।

बता दें कि पत्र में बच्चें ने बताया कि स्कूल में लाइट नहीं है। बैठने के लिए बैंच नहीं है। शौचालयों की सफाई नहीं होती है और बच्चों ही नहीं बल्कि शिक्षक भी कभी कभार अनुपस्थित रहते हैं। जब शिक्षक से पढ़ाई की बात कही जाती है तो वह डांटकर भगा देते हैं।

Source: Dainik Bhaskar