Tuesday, February 21, 2012

शिक्षा की गुणवत्ता पर एक, बच्चों पर सात फीसदी होता है खर्च


शिक्षा की गुणवत्ता पर एक, बच्चों पर सात फीसदी होता है खर्च
 
शिक्षा की गुणवत्ता पर एक, बच्चों पर सात फीसदी होता है खर्च 
पंकज कुमार पांडेय. नई दिल्ली

स्कूल की दहलीज तक बच्चों को ले जाने और उन्हें बीच में स्कूल छोडऩे से बचाए रखने के साथ ठीक-ठाक पढ़ाई यानी गुणवत्ता का सवाल बहुत पेचीदा है। गुणवत्ता की बड़ी-बड़ी बात करने वाली केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की पोल खोलने वाली तस्वीर खुद सरकारी आंकड़ों में है। मानव संसाधन मंत्रालय ने पिछले दिनों राज्यों के शिक्षा सचिवों के साथ जो डाटा साझा किया है, उसमें स्कूलों में गुणवत्ता पर होने वाले खर्च को लेकर दर्ज कहानी चौंकाने वाली है। बच्चों के ऊपर भी बजट का बहुत थोड़ा-सा हिस्सा ही खर्च होता है। बजट की सबसे ज्यादा रकम जाती है अध्यापकों के नाम। उनकी तनख्वाह और अन्य सुविधाओं के नाम पर।

स्कूलों में ट्रेनिंग का कोई इंतजाम नहीं है। कई राज्य तो मिला हुआ पैसा योजनाओं पर खर्च नहीं कर पाते हैं। खराब वित्तीय प्रबंधन के चलते बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, केरल, लक्षद्वीप, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम और अंडमान निकोबार ऐसे राज्यों में हैं जिन्होंने 50 फीसदी से भी कम खर्च वित्तीय वर्ष में दिखाया है। 13वें वित्त आयोग का फंड नहीं लेने वाले राज्यों में पंजाब शामिल है। गोवा, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, सिक्किम, मणिपुर जैसे राज्यों ने वित्त आयोग की ओर से आवंटित धनराशि नहीं ली है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने स्कूली शिक्षा के लिए आगामी वित्त वर्ष के लिए करीब 51 हजार करोड़ रुपए मांगे हैं। इसमें से पांच हजार करोड़ पहले की बकाया राशि है।

॥गुणवत्ता निश्चित रूप से बड़ा सवाल है। हम शिक्षा के अधिकार के अमल में आने के बाद से स्कूलों में दाखिलों के साथ गुणवत्ता बढ़ाने पर फोकस कर रहे हैं। जहां कमी है, दुरुस्त करने का प्रयास हो रहा है।'

- अंशू वैस, शिक्षा सचिव

Source: Dainik Bhaskar

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