Monday, April 02, 2012

दिल्ली में टीचर्स हैं नहीं, जो हैं वे ट्रेंड नहीं


दिल्ली में टीचर्स हैं नहीं, जो हैं वे ट्रेंड नहीं


राइट टू एजुकेशन एक्ट लागू हुए तो दो साल बीत गए, लेकिन दिल्ली के सरकारी स्कूलों के हाल बेहाल हैं। स्कूलों में टीचरों की भारी कमी है। कई टीचर अनट्रेंड हैं। 30 फीसदी स्कूलों में लड़के और लड़कियों के लिए अलग- अलग टॉयलेट तक का इंतजाम नहीं है। आरटीई एक्ट के अमल और उसके फायदे जानने के लिए दिल्ली आरटीई फोरम ने कई सरकारी रेकॉर्ड इकट्ठा किए। फोरम की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दिल्ली के स्कूलों में टीचरों की भारी कमी है। आधिकारिक रेकॉर्ड के मुताबिक, सरकार ने 2011-12 में टीचर की 12 हजार नई पोस्ट बनाने की योजना बनाई ताकि राइट टू एजुकेशन एक्ट के हिसाब से जरूरत पूरी हो सके। लेकिन ऐसा कोई आधिकारिक रेकॉर्ड नहीं है कि असल में कितने टीचरों की भर्ती की गई। दिसंबर 2011 के रेकॉर्ड के मुताबिक, 796 अनट्रेंड टीचर हैं जो आरटीई एक्ट के तहत जरूरी न्यूनतम योग्यता पूरी नहीं करते। 

डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (डीआईएसई) के डेटा के मुताबिक, 2011-12 में सिर्फ 31.25 फीसदी टीचर्स को इन-सर्विस ट्रेनिंग दी गई। दिल्ली में 0.6 पर्सेंट स्कूल ऐसे हैं जो एक टीचर के सहारे ही चल रहे हैं। सर्वे किए गए 207 स्कूलों से पता चला कि 22 पर्सेंट स्कूलों में बाउंडरी वॉल तक नहीं है। 30 पर्सेंट स्कूलों में लड़के- लड़कियों के लिए अलग टॉयलेट नहीं हैं। 30 पर्सेंट स्कूलों में इस्तेमाल के लायक टॉयलेट हैं ही नहीं। सिर्फ 5 पर्सेंट स्कूलों में स्टूडेंट्स के लिए पीने के साफ फिल्टर वॉटर का इंतजाम मिला। 30 पर्सेंट स्कूलों में इस्तेमाल लायक प्ले ग्राउंड ही नहीं मिले। 

जॉइंट ऑपरेशन फॉर सोशल हेल्प (जोश) के फाउंडर मेंबर सौरभ शर्मा ने कहा कि दिल्ली के स्कूलों में अभी तक स्कूल मैनेजमेंट कमिटियां नहीं बनी हैं क्योंकि नियम नवंबर 2011 को नोटिफाई हुए, जबकि इससे डेढ़ साल पहले एक्ट नोटिफाई हो चुका था। दिल्ली स्टेट रूल के मुताबिक, स्कूल मैनेजमेंट कमिटी का चेयरपर्सन प्रिसिंपल होगा। हालांकि, नैशनल मॉडल रूल के मुताबिक चेयरपर्सन और वाइस चेयरपर्सन का चुनाव पैरंट्स के बीच से करना चाहिए। दिल्ली सरकार ने सेंट्रल इंफॉर्मेशन कमिशन के इस निर्देश का भी उल्लंघन किया है कि कम्यूनिटी के लोगों से स्कूल का इंस्पेक्शन कराया जाए। 

Source: Nav Bharat Times

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