Tuesday, March 06, 2012

निजी स्कूलों में बच्चों से होती है क्रूरता


निजी स्कूलों में बच्चों से होती है क्रूरता 
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की रिपोर्ट में खुलासा 
एजेंसीत्न नई दिल्ली
अमूमन यह माना जाता है कि देश के निजी स्कूल बच्चों के विकास और करियर को लेकर सरकारी स्कूलों से बेहतर होते हैं, लेकिन एक अध्ययन के अनुसार यह गलतफहमी है। इसमें कहा गया है कि निजी स्कूलों में बच्चों के साथ सरकारी स्कूलों के मुकाबले ज्यादा क्रूर व्यवहार होता है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की ओर से सोमवार को 'स्कूलों में शारीरिक दंड' को लेकर विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट जारी की गई। इसमें सरकारी स्कूलों के साथ ही निजी स्कूलों के बारे में टिप्पणी की गई है। 'स्कूलों में शारीरिक दंड' को लेकर आयोग की ओर से दिशा-निर्देश भी जारी किए गए हैं।

आयोग की ओर से जारी अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, देश के निजी स्कूलों में 83.6 फीसदी लड़कों और 84.8 फीसदी लड़कियों को किसी न किसी तरह से मानसिक उत्पीडऩ का शिकार होना पड़ता है। वहीं, केंद्र सरकार के अधीनस्थ स्कूलों में यह आंकड़ा क्रमश: 70.5 और 72.6 फीसदी है।

राज्य सरकारों की ओर से संचालित स्कूलों के 81.1 फीसदी लड़कों और 79.7 फीसदी लड़कियों को मानसिक रूप से प्रताडि़त करने वाले अपशब्दों को झेलना पड़ता है। बाल आयोग की ओर से 2009-10 के दौरान सात राज्यों में सर्वेक्षण कराया गया। इस सर्वेक्षण में 6,632 छात्रों में से सिर्फ नौ ने ही कहा कि उन्हें उनके स्कूलों में किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। रिपोर्ट में हैरान करने वाली बात यह है कि बच्चों के साथ पशुसूचक शब्दों का भी इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह का व्यवहार निजी स्कूलों के 38.5 फीसदी लड़कों और 30.4 फीसदी लड़कियों के साथ होता है। वहीं केंद्र सरकार के अधीनस्थ स्कूलों में यह आंकड़ा 14.1 और 19.2 फीसदी है।

आयोग का कहना है कि स्कूलों में बच्चों पर उनकी जाति एवं समुदाय पर आधारित अभद्र टिप्पणियां की जाती हैं। बच्चों को कई तरह के शारीरिक दंड के साथ भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे वे शारीरिक एवं मानसिक तौर पर परेशान रहते हैं।

>निजी स्कूलों में 83.6 फीसदी लड़कों और 84.8 फीसदी लड़कियों को होना पड़ता है मानसिक उत्पीडऩ का शिकार

> केंद्र सरकार के अधीनस्थ स्कूलों में यह आंकड़ा रहा 70.5 और 72.6 फीसदी

> राज्य सरकारों के स्कूलों के 81.1 फीसदी लड़कों और 79.7 फीसदी लड़कियों को सुनने पड़ते हैं प्रताडऩा वाले अपशब्द

Source: Dainik Bhaskar

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